संपत्ति विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, सिर्फ रजिस्ट्री ही काफी नहीं – Supreme Court

By Prerna Gupta

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Supreme Court ने संपत्ति के मालिकाना हक से जुड़ा एक बेहद अहम फैसला सुनाया है, जो भविष्य में प्रॉपर्टी से जुड़े हर सौदे के लिए गाइड की तरह काम करेगा। यह मामला दो भाइयों के बीच एक संपत्ति को लेकर चल रहे विवाद से जुड़ा था।

एक भाई का दावा था कि उसका दूसरा भाई उसे वह संपत्ति गिफ्ट में दे चुका है और उसी आधार पर वह खुद को असली मालिक मानता है। उसका कहना था कि वह उस घर में रह भी रहा है। दूसरी ओर, दूसरे पक्ष ने पावर ऑफ अटॉर्नी (POA), हलफनामा और एग्रीमेंट टू सेल जैसे दस्तावेज पेश कर दावा किया कि संपत्ति उसकी है।

सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि कोई भी अचल संपत्ति (जैसे जमीन, घर आदि) केवल रजिस्टर्ड दस्तावेजों के जरिए ही कानूनी रूप से ट्रांसफर हो सकती है। बिना रजिस्ट्री के केवल एग्रीमेंट या POA के आधार पर कोई भी वैध मालिक नहीं बन सकता।

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कोर्ट ने रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 का हवाला देते हुए बताया कि संपत्ति का असली और वैध हकदार वही माना जाएगा जिसके नाम रजिस्टर्ड दस्तावेज हैं। इसलिए, दूसरे पक्ष की दलीलें मान्य नहीं मानी गईं क्योंकि उनके पास रजिस्ट्री नहीं थी।

क्या है पावर ऑफ अटॉर्नी और एग्रीमेंट टू सेल की भूमिका?

कई लोग ये मानते हैं कि पावर ऑफ अटॉर्नी या सेल एग्रीमेंट के आधार पर वे प्रॉपर्टी के मालिक बन सकते हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस भ्रम को दूर कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि:

इन दस्तावेजों का उपयोग केवल लेनदेन की प्रक्रिया में होता है, न कि मालिकाना हक स्थापित करने में।

रजिस्ट्री क्यों है जरूरी?

रजिस्ट्री एक कानूनी प्रक्रिया है जिसमें संपत्ति से जुड़ी पूरी जानकारी सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज होती है। इसमें स्टाम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस दी जाती है, जिससे यह दस्तावेज कानूनी रूप से मान्य हो जाता है।

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बिना रजिस्ट्री के कोई भी प्रॉपर्टी विवाद का कारण बन सकती है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला स्पष्ट रूप से बताता है कि केवल वैध रजिस्ट्री ही संपत्ति पर कानूनी हक दिला सकती है।

खरीदने से पहले क्या करें?

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला संपत्ति खरीदने वालों के लिए एक चेतावनी और सीख है। अब यह तय हो गया है कि अगर आपने किसी संपत्ति की रजिस्ट्री नहीं करवाई, तो आप उसके मालिक नहीं माने जाएंगे।

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