Property Rights Act : भारतीय परिवारों में मां का स्थान बहुत ऊंचा होता है। वह अपने जीवन का बड़ा हिस्सा बच्चों की परवरिश और भलाई में लगा देती है। लेकिन जब संपत्ति के अधिकारों की बात आती है, तो कई बार मां को यह सोचकर पीछे हटना पड़ता है कि बेटे की संपत्ति पर अब सिर्फ बहू और बच्चों का अधिकार है। यह सोच गलत है। भारतीय कानून में मां को बेटे की संपत्ति में पूरा हक दिया गया है।
मां का बेटों की संपत्ति में कानूनी अधिकार
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत, बेटे की संपत्ति में मां को कानूनी वारिस माना गया है। अगर बेटा अविवाहित हो और उसकी मृत्यु हो जाए, तो उसकी पूरी संपत्ति पर सबसे पहला हक मां का होता है। इसके बाद पिता और फिर भाई-बहनों का नंबर आता है।
अगर बेटा विवाहित है और कोई वसीयत नहीं छोड़ी, तो संपत्ति का बंटवारा उसकी पत्नी, बच्चों और माता-पिता के बीच बराबर किया जाता है। इसका मतलब है कि मां को उतना ही हिस्सा मिलेगा जितना बेटे की पत्नी को। यह नियम मां के त्याग और योगदान को मान्यता देता है।
अगर बेटा वसीयत बनाकर गया हो
अगर बेटा मरने से पहले कोई वसीयत छोड़ गया है, तो संपत्ति का बंटवारा उसी के अनुसार होगा। लेकिन अगर मां को वसीयत में कुछ भी नहीं दिया गया है, तो वह इसे अदालत में चुनौती दे सकती है। कोर्ट यह देखेगा कि क्या वसीयत में किसी करीबी रिश्तेदार के साथ अन्याय हुआ है। ऐसे में मां को न्याय मिल सकता है।
कानून है, लेकिन व्यावहारिक समस्याएं भी हैं
हालांकि कानून मां को पूरा अधिकार देता है, लेकिन हकीकत में मांएं कई बार चुप रह जाती हैं। उन्हें डर होता है कि अगर वे संपत्ति मांगेंगी तो पारिवारिक रिश्ते बिगड़ जाएंगे। लेकिन यह समझना जरूरी है कि अपने अधिकारों का उपयोग करना गलत नहीं है।
सबसे बेहतर तरीका यही है कि परिवार के सदस्य बैठकर बातचीत करें और न्यायपूर्ण समाधान निकालें। अगर बात नहीं बनती तो मां को कानूनी सलाह जरूर लेनी चाहिए। जागरूक रहना और अपने अधिकारों को जानना बेहद जरूरी है।
समाज को भी बदलनी होगी सोच
समाज में यह सोच बदलने की जरूरत है कि बेटे की शादी के बाद मां का कोई अधिकार नहीं रह जाता। मां का प्यार और त्याग जीवन भर साथ चलता है, और उसे उसका हक मिलना ही चाहिए। बहू के आने का मतलब यह नहीं कि मां को भुला दिया जाए। एक समझदारी भरा और संतुलित नजरिया ही परिवार को खुशहाल रख सकता है।