58, 60 या 62? रिटायरमेंट उम्र को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने तोड़ी चुप्पी – Retirement Age Hike

By Prerna Gupta

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Retirement age hike

Retirement Age Hike : सरकारी कर्मचारियों की रिटायरमेंट उम्र हमेशा से एक बहस का मुद्दा रही है। कोई 58 में रिटायर होता है, कोई 60 में, और कुछ जगहों पर तो 62 भी कर दी गई है।

इस असमानता को लेकर लंबे वक्त से एक जैसी रिटायरमेंट उम्र की मांग उठती रही है। अब इस बहस में सुप्रीम कोर्ट की एक बड़ी टिप्पणी सामने आई है, जो खास तौर पर मध्यप्रदेश के न्यायाधीशों के लिए राहत लेकर आई है।

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बड़ा बयान देते हुए कहा कि मध्यप्रदेश के जिला न्यायाधीशों की सेवा अवधि 61 वर्ष तक बढ़ाने में कोई कानूनी रुकावट नहीं है।

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देश के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए साफ कहा कि अगर हाईकोर्ट चाहे, तो यह बदलाव बिना किसी बाधा के लागू किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यह फैसला मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के प्रशासनिक निर्णय पर आधारित होगा। हाईकोर्ट को दो महीने के अंदर इस पर फैसला लेने को कहा गया है।

अगर हरी झंडी मिलती है तो क्या होगा असर?

अगर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट इसे मंजूरी दे देता है, तो राज्य में काम कर रहे जिला न्यायाधीश एक साल ज्यादा सेवा कर सकेंगे। इससे जुड़ी कुछ अहम बातें:

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  • अनुभव बना रहेगा: लंबे समय तक काम करने वाले जजों का अनुभव न्यायिक व्यवस्था में बरकरार रहेगा।

  • सिस्टम में स्थिरता: बार-बार रिटायरमेंट और नई नियुक्तियों से जो व्यवधान आता है, वो थोड़ा कम होगा।

  • भर्ती प्रक्रिया पर असर: नई भर्तियों की रफ्तार धीमी हो सकती है, क्योंकि सीटें थोड़ी देर तक भरी रहेंगी।

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हालांकि, यह भी सच है कि इससे जुड़े वित्तीय और प्रशासनिक पहलुओं की गहराई से जांच जरूरी होगी। आखिरकार, सरकार को इन कर्मचारियों का वेतन और सुविधाएं भी बढ़ी अवधि तक देनी होंगी।

बाकी राज्यों में क्या चल रहा है?

देशभर में न्यायिक अधिकारियों की रिटायरमेंट उम्र में बड़ा फर्क देखा जाता है। कुछ राज्यों में ये 58 साल है, कहीं 60 और कहीं-कहीं 62 भी। यही वजह है कि लंबे समय से एक जैसी रिटायरमेंट पॉलिसी की मांग उठ रही है। इससे न सिर्फ पारदर्शिता आएगी बल्कि सभी राज्यों के न्यायिक अफसरों को बराबरी मिलेगी।

अब गेंद हाईकोर्ट के पाले में

सुप्रीम कोर्ट ने तो साफ कर दिया है कि उन्हें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन आखिरी फैसला अब मध्यप्रदेश हाईकोर्ट को लेना है। अगर हाईकोर्ट प्रशासनिक तौर पर 61 वर्ष की उम्र सही मानता है, तो सुप्रीम कोर्ट भी अपनी मंजूरी देने को तैयार है।

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इस फैसले से एक नई शुरुआत हो सकती है, जो आगे चलकर दूसरे राज्यों के लिए भी मिसाल बन सकती है।

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